आधुनिक उपन्यासों की श्रृंखला में शिवमूर्ति के उपन्यास
उपन्यास साहित्य की एक प्रमुख विधा है, जिसमें समाज के विविध पहलुओं, जटिलताओं और बदलावों का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। आधुनिक उपन्यास विशेष रूप से शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, और सामाजिक परिवर्तन की जटिलताओं पर केंद्रित होते हैं। आधुनिक उपन्यास वे उपन्यास होते हैं जो 19वीं सदी के उत्तरार्ध और 20वीं सदी में लिखे गए। ये उपन्यास प्रायः समाज की जटिलताओं, व्यक्तिवाद, शहरीकरण, और आधुनिक जीवन की समस्याओं को उभारते हैं। इनमें पात्रों की आंतरिक दुनिया और उनके मानसिक संघर्षों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
उपन्यास आधुनिक युग की देन है। अंग्रेजी शिक्षा और साहित्य से पहले परिचित होने के कारण ‘उपन्यास’ शब्द का प्रयोग बंगाल में लगभग उन्नीसवीं शताब्दी के छठे दशक में निश्चित हो गया था । तत्पश्चात् बंगभाषा के श्रेष्ठ उपन्यासों के अनुवादों के क्रम में तथा पुनर्जागरण कालीन चेतना से सम्पृक्त होने के कारण, हिन्दी के क्षितिज पर भारतेन्दु के क्रियाशील होने पर हिन्दी में भी इसका प्रचलन हुआ। इस रूप में हिन्दी का ‘उपन्यास’ शब्द अंग्रेजी के ‘नॉवल’ के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है। किन्तु कुछ समालोचक विद्वान इस सत्य को झुठलाकर अपने पुरातनवादी आग्रह के कारण हिन्दी उपन्यास को प्राचीन भारतीय कथा-साहित्य की परम्परा का क्रमिक विकास मानते हैं।[1]
आधुनिक उपन्यासों में दृष्टि का परिवर्तन स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जहाँ पारंपरिक उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं और पारिवारिक जीवन पर अधिक ध्यान दिया गया था, वहीं आधुनिक उपन्यासों में व्यक्तिवाद, मानसिक संघर्ष, और शहरी जीवन की जटिलताओं को प्रमुखता दी गई है। इस दृष्टि परिवर्तन ने उपन्यास विधा को एक नई दिशा और गहराई प्रदान की है। प्रमुख उपन्यासकारों जैसे प्रेमचंद, नागार्जुन, रेणु, भीष्म साहनी, मनोहर श्याम जोशी और शिवमूर्ति ने अपने लेखन के माध्यम से समाज की जटिलताओं और समस्याओं को गहराई से प्रस्तुत किया है।
प्रमुख विशेषताएँ
1. यथार्थवाद
आधुनिक उपन्यासों में यथार्थवाद का प्रमुख स्थान है। ये उपन्यास समाज की वास्तविकताओं और जीवन की जटिलताओं को प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं। उदाहरण के लिए, प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ में ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और सामाजिक असमानताओं को यथार्थवादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।
2. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक उपन्यासों में पात्रों की मानसिक और भावनात्मक जटिलताओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इनमें पात्रों के आंतरिक संघर्षों, विचारों और भावनाओं को गहराई से उभारा जाता है। उदाहरण के लिए, मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ‘कसप’ में पात्रों की मानसिक स्थिति और उनके भावनात्मक संघर्षों को गहनता से चित्रित किया गया है।
3. शहरीकरण और औद्योगिकीकरण
आधुनिक उपन्यासों में शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के प्रभावों को प्रमुखता से दिखाया जाता है। इनमें शहरी जीवन की जटिलताओं, आर्थिक असमानताओं, और औद्योगिक समाज की समस्याओं को उजागर किया जाता है। उदाहरण के लिए, भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ में विभाजन के बाद के शहरी जीवन की जटिलताओं को चित्रित किया गया है।
4. सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे
आधुनिक उपन्यासों में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को विशेष महत्व दिया जाता है। इनमें जातिवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी, और अन्याय जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाता है। उदाहरण के लिए, अरविंद अडिगा के उपन्यास ‘द व्हाइट टाइगर’ में भारतीय समाज की सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को उभारा गया है।
ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
आधुनिक उपन्यासों का साहित्यिक परिदृश्य बेहद समृद्ध और विविध है। यहाँ ग्रामीण परिवेश से सम्बंधित एवं उसे प्रभावित करने वाले कुछ उपन्यासों का अध्ययन किया है। ग्रामीण जीवन पर आधारित इन उपन्यासों में समाज की जटिलताओं, संघर्षों, और समस्याओं को गहराई से उभारा गया है। इन लेखकों ने अपने उपन्यासों के माध्यम से भारतीय ग्रामीण समाज की वास्तविकताओं को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है –
· प्रेमचंद (मुंशी प्रेमचंद)
- गोदान – भारतीय ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और असमानताओं का चित्रण।
- निर्मला – बाल विवाह की त्रासदी और समाज में स्त्री की स्थिति पर आधारित।
- प्रेमाश्रम – इसमें किसानों और जमींदारों के बीच के संघर्ष को उभारा गया है।
· फणीश्वर नाथ रेणु
- मैला आँचल – बिहार के ग्रामीण जीवन और संस्कृति का विस्तृत चित्रण।
- परती परिकथा – ग्रामीण समाज की समस्याओं और उनकी जीवनधारा को उजागर करता है।
- जुलूस – स्वतंत्रता के बाद के ग्रामीण जीवन की जटिलताओं और संघर्षों का चित्रण।
· शिवमूर्ति
- सिरी उपमाय उपन्यास – भारतीय ग्रामीण जीवन की समस्याओं और संघर्षों का गहन चित्रण।
- तर्पण – जातिगत समस्याओं और उनके सामाजिक प्रभावों का वर्णन।
- अकाल–दण्ड – समाज की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का विश्लेषण।
- त्रिशूल – ग्रामीण जीवन की जटिलताओं और संघर्षों का चित्रण।
- राजा पांडे के टहलुए – भारतीय समाज की जातिगत और सामाजिक समस्याओं का उजागर करना।
- अगम बहै दरियाव – बदलते ग्रामीण समाज की परिस्थितियों और संघर्षों का चित्रण।
· नागार्जुन
- बलचनमा – किसानों के संघर्ष और समस्याओं का चित्रण।
- रतिनाथ की चाची – ग्रामीण समाज की जटिलताओं और स्त्री की स्थिति का सजीव चित्रण।
· श्रीलाल शुक्ल
- राग दरबारी – ग्रामीण समाज की जटिलताओं और विफलताओं का व्यंग्यपूर्ण चित्रण।
- विश्रामपुर का संत – ग्रामीण राजनीति और समाज की समस्याओं का चित्रण।
- नीम का पेड़ – यह उपन्यास भारतीय समाज की पारंपरिक और व्यक्तिगत विचारधारा को उजागर करता है।
राहुल सांकृत्यायन
- वोल्गा से गंगा – ग्रामीण और आदिवासी समाज की समस्याओं का चित्रण।
- दिवोदास – आदिवासी जीवन और उनकी समस्याओं का सजीव चित्रण।
· शैलेश मटियानी
- मृत्युंजय – ग्रामीण जीवन की समस्याओं और संघर्षों का चित्रण।
- गोरा बादल – ग्रामीण समाज की समस्याओं और उनकी जीवनधारा का वर्णन।
· भीष्म साहनी
- तमस – विभाजन के बाद के ग्रामीण जीवन की जटिलताओं और संघर्षों का चित्रण।
- मय्यादास की माड़ी – समाज की जटिलताओं और राजनीति के खेल का चित्रण।
· अमृता प्रीतम
- पिंजर – विभाजन के बाद के ग्रामीण जीवन की समस्याओं और संघर्षों का चित्रण।
- कच्ची सड़क – ग्रामीण समाज की जटिलताओं और मानवीय संबंधों का चित्रण।
· मन्नू भंडारी
- महाभोज – ग्रामीण समाज की राजनीति और सामाजिक समस्याओं का चित्रण।
- आपका बंटी – ग्रामीण जीवन की समस्याओं और परिवारिक संघर्षों का वर्णन।
ग्रामीण जीवन को उपन्यासों के माध्यम से प्रस्तुत करने वाले विभिन्न लेखकों ने भारतीय समाज में आये परिवर्तनों का वर्णन किया है। प्रेमचंद ने ‘गोदान’ एवं ‘प्रेमाश्रम’ के माध्यम से ग्रामीण समाज के किसानों की दरिद्रता, भूमिहीनता और जातिवाद की समस्याओं का चित्रण किया है। इनके माध्यम से समाज में सामाजिक जागरूकता का विकास हुआ और किसानों के हक की मांग को लेकर समाज में संशोधन हुआ। नागार्जुन के ‘बलचनामा’ में ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के उत्थान और संघर्षों का चित्रण किया है। उनके माध्यम से कृषि विकास, समाजिक बदलाव, और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। ‘वोल्गा से गंगा’ में राहुल सांकृत्यायन ने सोवियत संघ के समाज में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास, कृषि उत्पादन में सुधार, और समाज के सामाजिक विकास का वर्णन किया है। भीष्म साहनी के ‘तमस’ में भारतीय समाज के सामाजिक और आर्थिक संकटों का विवरण है। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक बदलाव, राजनीतिक संघर्ष, और समाज की असमानता में सुधार आया है। ‘महाभोज’ में मन्नू भंडारी ने ग्रामीण समाज के व्यापारिक और सामाजिक विकास, आर्थिक स्थिति में सुधार, और समाज के संघर्षों का वर्णन किया है। ‘अगम बहै दरियाव’ में शिवमूर्ति ने ग्रामीण भारत की विभिन्न समस्याओं, सामाजिक परिवर्तनों, और विकास के माध्यम से हो रहे बदलाव का वर्णन किया है। उन्होंने ग्रामीण समाज के संघर्षों और उनके समाधानों को गहराई से दिखाया है। इन उपन्यासों के माध्यम से हम देख सकते हैं कि ग्रामीण जीवन में समाज, आर्थिक, और सामाजिक परिवर्तनों में कैसे विकास हुआ है और कैसे इन परिवर्तनों ने समाज को प्रभावित किया है।
शिवमूर्ति :
शिवमूर्ति हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित नाम हैं, जिन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत चित्रण किया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन, दलित समाज की पीड़ा, स्त्री जीवन की चुनौतियों और मानवीय संबंधों की जटिलताओं को बारीकी से उभारा गया है। शिवमूर्ति की लेखन शैली सरल, सहज और प्रभावशाली है। वे आम लोगों की भाषा का प्रयोग करते हैं और अपनी कहानियों में यथार्थवाद और भावनाओं का कुशलतापूर्वक मिश्रण करते हैं। शिवमूर्ति हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जिन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का अविस्मरणीय चित्रण किया है। उनकी रचनाएं प्रासंगिक हैं।
शिवमूर्ति के उपन्यासों की विशेषताएं:
- सामाजिक यथार्थवाद: शिवमूर्ति अपने उपन्यासों में समाज के विभिन्न पहलुओं, विशेष रूप से ग्रामीण जीवन, दलित समाज और स्त्री जीवन की वास्तविकताओं का चित्रण करते हैं।
- मानवीय संवेदनाएं: वे मानवीय भावनाओं, जैसे कि प्रेम, क्रोध, भय, आशा और निराशा को गहराई से उजागर करते हैं।
- पात्र चित्रण: उनके पात्र जीवंत और विश्वसनीय होते हैं, जिनके साथ पाठक सहानुभूति रख सकते हैं।
- कहानी कहने की कला: शिवमूर्ति एक कुशल कहानीकार हैं जो पाठकों को अपनी कहानियों में बांधे रखते हैं।
भारत ग्रामों का देश है, ये सभी बुद्धिजीवी कहते हैं परन्तु इस बात को विश्लेषित कर, उन्हे लोंगों के समक्ष प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास प्रेमचंद जी के द्वारा ही हुआ है। जहां भी हल कुदाल की बात हो, वहां वे प्रगतिशील लेखक की भांति डटे रहते हैं।[2]
शिवमूर्ति ने जिन गांवों को स्थापित किया वे आस्ट्रेलिया के गांव नहीं हैं। वे आज के गांव हैं। वहां के लोगों की निराशा, संघर्ष, जिजीविशा और रागद्वेष उनकी कहानियों में वास्तविक रूप में आये हैं, जैसा बहुत कम लेखकों के कथा साहित्य में पाया जाता है।… शिवमूर्ति का कथा साहित्य किसी सिफारिस का मोहताज नहीं है। उनका योगदान ग्रामीण और निम्नवर्ग के पात्रों को उठाने में है, जिन्हें और लोगों ने नहीं उठाया।[3]
संदर्भ ग्रन्थ सूची :
- डॉ. भगवती चरण मिश्र, हिंदी के चर्चित उपन्यासकार, राजपाल प्रकाशन
- मुंशी प्रेमचंद, ‘गोदान’, साहित्य अकादमी
- श्रीलाल शुक्ल, ‘राग दरबारी’, राजकमल प्रकाशन
- विष्णु प्रभाकर, ‘नीम का पेड़’, साहित्य अकादमी
- भीष्म साहनी, ‘तमस’, राजकमल प्रकाशन
- मनोहर श्याम जोशी ‘कसप’, वाणी प्रकाशन
- शिवमूर्ति, अगम बहै दरियाव, राजकमल प्रकाशन
विकाश शर्मा
शोधार्थी, हिंदी विभाग
मानविकी संकाय,
पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग
[1] सिंह, डॉ. नन्द बहादुर, हिंदी उपन्यास का उद्भव एवं विकास
[2] सिकरवार राजश्री, शब्द ब्रह्म, पृ. 97
[3] कुमार मनीष, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च स्टडीज (ISSN 2347-7660) पृ 33