शोध नैतिकता : आशय और मूल तत्वों का विश्लेषण
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शोध नैतिकता : आशय और मूल तत्वों का विश्लेषण

शोध नैतिकता एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो वैज्ञानिक और शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र में नैतिक आचरण को निर्धारित करता है। यह नैतिक मूल्यों, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, और शुद्धता की महत्ता को प्राथमिकता देता है, और शोधकर्ताओं को उच्च नैतिक मानकों के साथ अपने कार्यों को संचालित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। शोध नैतिकता, शोध प्रक्रिया की नींव है।

नैतिकता :

समाज में व्यक्ति दो ही चीजों से जाना जाता है, एक तो ज्ञान और दूसरा उसका नैतिक व्यवहार। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए दोनों आवश्यक हैं। ज्ञान को सफलता की चाबी कहा जाता है और नैतिकता को सफलता की सीढ़ी। भारतीय संस्कृति में नैतिकता (नीतिशास्त्र) का सदैव महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह केवल नियमों का पालन करने तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन जीने का एक समग्र दर्शन है। नैतिकता का पालन करके हम एक बेहतर व्यक्ति, एक बेहतर समाज और एक बेहतर राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। नैतिकता केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव समाज और राष्ट्र पर भी पड़ता है।

  • व्यक्तिगत जीवन: नैतिकता से व्यक्ति को आत्मिक शांति और संतोष मिलता है।
  • सामाजिक जीवन: नैतिकता से समाज में बंधुत्व, सहयोग और सद्भाव की भावना बढ़ती है।
  • राष्ट्रीय जीवन: नैतिकता से राष्ट्र मजबूत और समृद्ध होता है।

मनुस्मृति में नैतिक मूल्यों के रूप में धर्म के 10 लक्षण बतलाये गये है।-

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः । धीः विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।।

  • धृति: हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना
  • क्षमा: बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना
  • दम: हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना
  • अस्तेय: दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना
  • शौच: भीतर और बाहर की पवित्रता
  • इंद्रियनिग्रह: इंद्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना
  • धी: सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना
  • विद्या: यथार्थ ज्ञान लेना
  • सत्य: हमेशा सत्य का आचरण करना
  • अक्रोध: क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना

उत्तर दायित्व :

उत्तरदायित्व शब्द का अर्थ है किसी कार्य या परिणाम के लिए जवाबदेह होना। यह एक नैतिक और सामाजिक अवधारणा है जो व्यक्तियों, समूहों, संगठनों और यहां तक ​​कि राष्ट्रों पर भी लागू होती है।

उत्तरदायित्व के विभिन्न आयाम:

  • व्यक्तिगत उत्तरदायित्व: अपने व्यक्तिगत कार्यों, विचारों और व्यवहार के लिए जिम्मेदार होना।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व: समाज के एक सदस्य के रूप में अपने कर्तव्यों और दायित्वों को पूरा करना।
  • पर्यावरणीय उत्तरदायित्व: पर्यावरण की रक्षा करना और उसके प्रति जिम्मेदारी से व्यवहार करना।
  • व्यावसायिक उत्तरदायित्व: नैतिक रूप से और कानूनी रूप से व्यवसाय करना।
  • राजनीतिक उत्तरदायित्व: नागरिकों के प्रति जवाबदेह होना और उनके हितों का प्रतिनिधित्व करना।

उचित और अनुचित का महत्व:

  • नैतिकता: उचित और अनुचित की अवधारणाएं हमें नैतिक रूप से सही और गलत के बीच अंतर करने में मदद करती हैं।
  • व्यवहार: ये अवधारणाएं हमारे व्यवहार को मार्गदर्शन देती हैं और हमें दूसरों के साथ सम्मान और न्याय के साथ व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैं।
  • समाज: उचित और अनुचित की साझा समझ एक समाज को सुचारू रूप से कार्य करने और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने में मदद करती है।

महत्व :

शोध नैतिकता का महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह शोधकर्ताओं को नैतिक मूल्यों के अनुसार अपने काम करने के लिए प्रेरित करता है। यह नैतिकता, ईमानदारी, और पारदर्शिता के माध्यम से वैज्ञानिक और शैक्षिक कम्युनिटी में भरोसा और विश्वास को बढ़ाता है। शोध नैतिकता के अभाव में, अनुसंधान के परिणामों पर संदेह और संशय उत्पन्न हो सकता है, जिससे वैज्ञानिक और शैक्षिक प्रगति में विघ्न आ सकता है।

मूल तत्व :

  1. ईमानदारी और पारदर्शिता: शोधकर्ताओं को अपने अनुसंधान के परिणामों को स्पष्टता से प्रस्तुत करना चाहिए, और किसी भी प्रकार की गलतबयानी से बचना चाहिए।
  2. सहमति और गोपनीयता: शोधकर्ताओं को अपने सहभागियों से सहमति लेनी चाहिए, और उनकी गोपनीयता का सम्मान करना चाहिए।
  3. निष्पक्षता: शोधकर्ताओं को अपने अनुसंधान को निष्पक्षता के साथ संचालित करना चाहिए, और व्यक्तिगत, आर्थिक या राजनीतिक दबावों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
  4. दायित्व और उत्तरदायित्व: शोधकर्ताओं को अपने कार्यों के परिणामों के प्रति जागरूक रहना चाहिए, और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।

शोधकर्ताओं के लिए उपयुक्त आचरण :

शोधकर्ताओं को अपने कार्यों के परिणामों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि अनुसंधान से समाज को लाभ पहुंचे और किसी प्रकार का नुकसान न हो।

  1. सत्यनिष्ठता: शोधकर्ताओं को अपने अनुसंधान में सत्य को बरकरार रखना चाहिए, और किसी भी प्रकार की तथ्यात्मक आधार पर सत्य की घोषणा करनी चाहिए। उन्हें अपने अध्ययन के परिणामों को सच्चाई के साथ साझा करना चाहिए, भले ही वे चुनौतीपूर्ण या अप्रिय हों।
  2. उत्तरदायित्व: शोधकर्ताओं को अपने अनुसंधान के परिणामों के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी होना चाहिए। वे अपने काम के परिणामों के प्रभाव को समझते हुए उचित कार्रवाई उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
  3. सहमति और गोपनीयता: शोधकर्ताओं को अपने अनुसंधान के संदर्भ में सहमति और गोपनीयता के मामले में उचित व्यवहार करना चाहिए। वे अपने सहयोगियों और सहयोगियों की गोपनीयता का सम्मान करना चाहिए और किसी भी निजता या गोपनीयता को सेंट्रलिसेशन का काम न करना चाहिए।
  4. निष्कर्ष सहमति: शोधकर्ताओं को अपने अनुसंधान के परिणामों को पेश करते समय संदेह और संशय को साहित्यिक और वैज्ञानिक निष्कर्ष तक ले जाने की क्षमता रखनी चाहिए।
  5. समाज की सेवा: शोधकर्ताओं को अपने काम के माध्यम से समाज की सेवा करने का जज्बा रखना चाहिए। उन्हें अपने अनुसंधान को सामाजिक और मानविकी लाभ के लिए उपयोगी बनाने का प्रयास करना चाहिए।

शोध नैतिकता के उल्लंघन के परिणाम

  1. वैज्ञानिक समुदाय में अविश्वास: गलत आचरण के कारण शोधकर्ता और उनके कार्य पर से विश्वास उठ सकता है।
  2. कानूनी कार्रवाई: साहित्यिक चोरी और अन्य अनैतिक आचरण कानूनी कार्रवाई की वजह बन सकते हैं।
  3. व्यक्तिगत साख को नुकसान: शोध नैतिकता का उल्लंघन करने से शोधकर्ता की व्यक्तिगत साख और करियर को नुकसान पहुंच सकता है।

साहित्यिक चोरी :

साहित्यिक चोरी (Plagiarism) का अर्थ है किसी अन्य व्यक्ति के विचारों, शब्दों, या कार्यों को बिना उचित स्वीकृति या संदर्भ के अपने कार्य के रूप में प्रस्तुत करना। यह एक गंभीर नैतिक और कानूनी अपराध है। साहित्यिक चोरी के विभिन्न रूप होते हैं, और इसे कई उदाहरणों के माध्यम से समझा जा सकता है।

साहित्यिक चोरी के प्रकार और उदाहरण :

1.     प्रत्यक्ष साहित्यिक चोरी (Direct Plagiarism) : इसमें किसी अन्य लेखक के शब्दों या वाक्यों को बिना किसी परिवर्तन के सीधे अपने कार्य में शामिल किया जाता है।

उदाहरण: किसी पुस्तक या लेख से किसी पैराग्राफ को बिना उद्धरण के अपनी रिपोर्ट में शामिल करना।

2.     आंशिक साहित्यिक चोरी (Partial Plagiarism) : इसमें मूल स्रोत के कुछ शब्दों को बदलकर या कुछ हिस्सों को हटाकर अपने कार्य में शामिल किया जाता है।

उदाहरण: किसी वेबसाइट के लेख को थोड़ा बदलकर अपने ब्लॉग पोस्ट में डालना।

3.        स्वसाहित्यिक चोरी (Self-Plagiarism) : इसमें लेखक अपने पिछले कार्यों को बिना उचित संदर्भ के पुनः प्रस्तुत करता है।

उदाहरण: किसी छात्र द्वारा अपने पहले से सबमिट किए गए असाइनमेंट को पुनः प्रस्तुत करना।

4.     मोज़ेक साहित्यिक चोरी (Mosaic Plagiarism) : इसमें लेखक विभिन्न स्रोतों से लिए गए वाक्यांशों और विचारों को मिलाकर अपना कार्य बनाता है, बिना मूल स्रोत का उल्लेख किए।

उदाहरण: किसी शोधपत्र में विभिन्न लेखों से विचारों और वाक्यांशों को मिलाकर प्रस्तुत करना।

5.        सामग्री का पुनः उपयोग (Recycling) : इसमें लेखक एक ही सामग्री को विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुत करता है।

उदाहरण: किसी लेखक द्वारा एक ही लेख को विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित करना बिना यह बताए कि यह पहले से प्रकाशित हो चुका है।

6.        अनुचित उद्धरण (Improper Citation) : इसमें लेखक स्रोत का उल्लेख करता है, लेकिन वह सटीक या पर्याप्त नहीं होता।

उदाहरण: किसी स्रोत का आंशिक उल्लेख करना, जैसे लेखक का नाम तो देना लेकिन पृष्ठ संख्या या प्रकाशन की तारीख को छोड़ देना।

साहित्यिक चोरी से बचने के उपाय :

  1. उचित उद्धरण: किसी अन्य के विचारों, शब्दों, या कार्यों का उपयोग करते समय हमेशा सही ढंग से उद्धरण दें।
  2. मूल सामग्री: हमेशा अपने स्वयं के विचार और शब्दों का उपयोग करें।
  3. स्रोतों की जांच: सुनिश्चित करें कि आपने सभी स्रोतों को सही तरीके से सूचीबद्ध किया है।
  4. प्लैगरिज्म चेकर्स: अपने कार्य को साहित्यिक चोरी जांच उपकरणों (Plagiarism checkers) से जांचें।
  5. समय प्रबंधन: समय पर अपना कार्य करें ताकि आपको समय की कमी के कारण किसी अन्य के कार्य को चोरी करने की आवश्यकता न पड़े।

साहित्यिक चोरी से बचना नैतिक और कानूनी दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह न केवल आपकी व्यक्तिगत साख को बनाए रखता है, बल्कि आपके कार्य को विश्वसनीय और सम्मानजनक भी बनाता है।

 भारत में साहित्यिक चोरी एक नैतिक मुद्दे की तरह है न कि कानूनी। इसलिए एक लेखक कॉपीराइट उल्लंघन के खिलाफ केवल कानूनी कार्रवाही कर सकता है, सभी प्रकार की साहित्यिक चोरी के लिए नहीं। अनुमति के बिना किसी भी कॉपीराइट की गई सामग्री का उपयोग कॉपीराइट उल्लंघन का कारण बनता है। यह साहित्यिक चोरी से बहुत अलग है।

भारतीय कॉपीराइट अधिनियम की धारा 57 लेखक को एक विशेष अधिकार देती है। यह साहित्यिक चोरी सहित उनके काम के किसी भी अनधिकृत उपयोग के खिलाफ लेखक को सुरक्षा प्रदान करता है।

अधिनियम की धारा 63 कॉपीराइट उल्लंघन को एक आपराधिक अपराध मानती है। सजा में 6 महीने से 3 साल तक की कैद शामिल हो सकती है। कभी-कभी कुछ मौद्रिक क्षतिपूर्ति हो सकती है।

कॉपीराइट उल्लंघन :

कॉपीराइट उल्लंघन का मतलब है कि किसी अन्य व्यक्ति की कॉपीराइट सामग्री का बिना अनुमति या उचित लाइसेंस के उपयोग करना। यह एक गंभीर अपराध है और इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं। कॉपीराइट कानून का उद्देश्य रचनात्मक कार्यों की सुरक्षा करना और उनके रचनाकारों को उनके काम का उचित क्रेडिट और मुआवजा प्रदान करना है।

कॉपीराइट उल्लंघन के तत्व

  1. मूल सामग्री: कॉपीराइट सुरक्षा केवल उन सामग्री पर लागू होती है जो मौलिक और रचनात्मक हैं। यह साहित्यिक कार्यों, संगीत, फिल्म, सॉफ्टवेयर, और कला जैसे रचनात्मक कार्यों पर लागू होती है।
  2. अधिकार का उल्लंघन: कॉपीराइट उल्लंघन तब होता है जब कोई व्यक्ति बिना अनुमति के कॉपीराइट धारक के विशेष अधिकारों का उल्लंघन करता है, जैसे कि प्रतिलिपि बनाना, वितरण करना, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना, या व्युत्पन्न कार्य बनाना।
  3. अनुमति का अभाव: कॉपीराइट धारक की अनुमति के बिना सामग्री का उपयोग करना कॉपीराइट उल्लंघन है। यह अनुमति लाइसेंस, खरीदारी या अन्य कानूनी साधनों के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
  4. जानबूझकर या अनजाने में: कॉपीराइट उल्लंघन जानबूझकर या अनजाने में हो सकता है। हालांकि, यह अक्सर महत्वपूर्ण नहीं होता कि उल्लंघन जानबूझकर किया गया है या नहीं; अगर उल्लंघन हुआ है, तो इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं।

कॉपीराइट उल्लंघन के उदाहरण

  1. साहित्यिक चोरी: किसी अन्य लेखक की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करना या किसी अंश को बिना उचित क्रेडिट दिए अपने कार्य में शामिल करना। उदाहरण: एक विद्यार्थी द्वारा किसी पुस्तक के अंश को अपनी परियोजना में शामिल करना बिना स्रोत का उल्लेख किए।
  2. म्यूजिक पाइरेसी: किसी गाने या एल्बम को इंटरनेट से बिना लाइसेंस के डाउनलोड करना या बिना अनुमति के किसी संगीत को अपने वीडियो में उपयोग करना। उदाहरण: एक यूट्यूबर द्वारा किसी पॉपुलर गाने को अपने वीडियो के बैकग्राउंड में बिना अनुमति के इस्तेमाल करना।
  3. सॉफ्टवेयर पाइरेसी: बिना लाइसेंस के सॉफ़्टवेयर का उपयोग करना, डाउनलोड करना या वितरित करना। उदाहरण: किसी पेड सॉफ़्टवेयर को बिना लाइसेंस के उपयोग करना या उसके क्रैक संस्करण को डाउनलोड करना।
  4. वीडियो कॉपीराइट उल्लंघन: किसी फिल्म, टीवी शो, या अन्य वीडियो सामग्री को बिना अनुमति के इंटरनेट पर अपलोड करना या साझा करना। उदाहरण: किसी नई रिलीज हुई फिल्म को बिना अनुमति के यूट्यूब पर अपलोड करना।
  5. फोटोग्राफी उल्लंघन: किसी फोटोग्राफर की फोटो को बिना अनुमति के उपयोग करना। उदाहरण: किसी वेबसाइट या ब्लॉग पर किसी अन्य फोटोग्राफर की तस्वीरों को बिना अनुमति के पोस्ट करना।

कॉपीराइट उल्लंघन के परिणाम

कॉपीराइट उल्लंघन के गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. आर्थिक दंड: कॉपीराइट उल्लंघन के लिए आर्थिक दंड और क्षतिपूर्ति की मांग की जा सकती है।
  2. अदालती आदेश: उल्लंघन को रोकने के लिए अदालत से आदेश प्राप्त किया जा सकता है।
  3. कानूनी कार्रवाई: गंभीर मामलों में, कॉपीराइट उल्लंघन के लिए आपराधिक कार्रवाई भी हो सकती है।

कॉपीराइट कानून का पालन करना और रचनाकारों की सामग्री का सम्मान करना महत्वपूर्ण है। हमेशा अनुमति प्राप्त करना चाहिए, उचित लाइसेंस खरीदना चाहिए, और स्रोत का उचित उल्लेख करना चाहिए। इससे न केवल कानूनी समस्याओं से बचा जा सकता है, बल्कि यह रचनात्मक समुदाय का भी समर्थन करता है।

निष्कर्ष :

इन सभी मूल तत्वों का पालन करके, शोधकर्ता न केवल वैज्ञानिक और शैक्षिक क्षेत्रों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देते हैं, बल्कि समाज के लिए भी गुणकारी योगदान प्रदान करते हैं। शोध नैतिकता के माध्यम से, वे सार्वजनिक नीतियों और नियमों की पालन करते हुए अपने कार्य को सही और न्यायसंगत बनाते हैं, जिससे अनुसंधान क्षेत्र में विश्वास बढ़ता है और समाज के लिए विशेष योगदान किया जा सकता है।

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विकाश शर्मा

शोधार्थी, हिंदी विभाग

मानविकी संकाय,

पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग

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