अगम बहै दरियाव
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अगम बहै दरियाव

यह उपन्यास चार दशकों की अवधि को कवर करता है, जिसमें हल और बैल से लेकर ट्रैक्टर तक के दौर का वर्णन है। यह एक प्रतीकात्मक विभाजन है, जो पुरानी और नई पीढ़ियों के संघर्ष को दर्शाता है। शिवमूर्ति ने बड़ी कुशलता से यह दिखाया है कि कैसे तकनीकी प्रगति के बावजूद, किसानों की समस्याएं और संघर्ष स्थिर रहते हैं।

भाषा और शैली

शिवमूर्ति की भाषा में ग्रामीण परिवेश और बोली-बानी की सजीवता है। उनकी शैली सरल और स्पष्ट है, जो पाठकों को उपन्यास में बांधे रखती है। ग्रामीण जीवन की बारीकियों का वर्णन इतने जीवंत तरीके से किया गया है कि पाठक स्वयं को उस माहौल का हिस्सा महसूस करने लगते हैं। उनकी भाषा की सहजता और कथा का प्रवाह उपन्यास को पठनीय बनाता है।

गाँव की असलियत और उसकी दुश्वारियाँ

शिवमूर्ति ने प्रेमचंद और रेणु की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, ‘अगम बहै दरियाव’ में ग्रामीण जीवन की सच्चाई और कठिनाइयों का गहरा चित्रण किया है। उपन्यास में विभिन्न सामाजिक वर्गों—अगड़े, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक—सभी की आवाजें और जीवन-स्थितियाँ शामिल हैं। उन्होंने दिखाया है कि आजादी से पहले ज़मींदार और अंग्रेज़ जैसे खलनायक होते थे, जबकि आजादी के बाद उनके दुश्मनों के चेहरे बदल गए हैं।

किसानों की आर्थिक तंगी और जद्दोजहद

किसानों की समस्याओं को शिवमूर्ति ने बड़ी संवेदनशीलता से चित्रित किया है। उन्होंने दिखाया है कि कैसे किसान अपनी मेहनत के बावजूद, बाजार की तिकड़में और सरकारी नीतियों के चलते उचित मूल्य नहीं प्राप्त कर पाते। किसान की आर्थिक तंगी और कर्ज़ के जाल में फंसने की व्यथा को बड़े ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

स्त्री पात्रों का संघर्ष और उनके गुण

उपन्यास में स्त्री पात्रों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। दहबंगा, पहलवानिन, विद्रोही बहु और सोना जैसे पात्र न्याय-अन्याय का भेद जानने वाली और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली स्त्रियां हैं। उनके संघर्ष और मेहनत को शिवमूर्ति ने बड़ी खूबसूरती से उकेरा है। सोना का चरित्र विशेष रूप से स्त्री अस्मिता और गरिमा का उज्जवल आदर्श प्रस्तुत करता है।

उपन्यास की सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि

उपन्यास में आपातकाल, राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं से लेकर उदारीकरण के बाद का दौर शामिल है। यह एक करुण महागाथा के रूप में सामने आता है, जिसमें किसान-जीवन अपनी सम्पूर्णता में उभरता है। विद्रोही नायक के माध्यम से लेखक ने सामाजिक न्याय और जातिवाद जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है।

निष्कर्ष

‘अगम बहै दरियाव’ गाँव और किसान की जिंदगी की सच्चाई को पूरी संवेदनशीलता के साथ पेश करता है। शिवमूर्ति की यह रचना नायाब क़िस्सागोई का उदाहरण है और हिंदी कथा-साहित्य में गाँव और किसान की खा़ली जगह को भरने का प्रयास करती है।

यह उपन्यास न केवल किसानों की कठिनाइयों और संघर्षों की गहरी और मार्मिक कहानी प्रस्तुत करता है, बल्कि सामाजिक न्याय और जातिवाद जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाता है। भाषा और कथा का प्रवाह उपन्यास को अत्यंत पठनीय बनाता है, जबकि लोक जीवन की सच्चाई और सामाजिक बुराइयों का चित्रण इसे और अधिक प्रभावशाली बनाता है।

‘अगम बहै दरियाव’ पढ़ने लायक़ उपन्यास है, जो पाठकों को गाँव की सच्चाई से रूबरू कराता है और उनकी क़िस्सागोई का लुत्फ़ उठाने का मौका देता है।